अमरावती
अमरावती एक ऐसा नगर है, जो सम्पन्न सांस्कृतिक विरासत और धरोहर का वहन करता है।
इसकी संस्कृति विविध समुदायों, धर्मों, जातियों आदि के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती है, इस नगर को पुण्यक्षेत्र या अमरेश्वरम भी कहते हैं।
अमरावती और इसके निकटस्थ धरणीकोटा का अभिलेखित इतिहास दूसरी शताब्दी ई. पू. पुराना है।
इसकी संस्कृति विविध समुदायों, धर्मों, जातियों आदि के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती है, इस नगर को पुण्यक्षेत्र या अमरेश्वरम भी कहते हैं।
अमरावती और इसके निकटस्थ धरणीकोटा का अभिलेखित इतिहास दूसरी शताब्दी ई. पू. पुराना है।
यह आंध्र सातवाहनों की राजधानी थी जिन्होंने दूसरी शताब्दी ई. पू. से तीसरी शताब्दी ई. तक शासन किया।
सातवाहनों के पतन के बाद आंध्र के इक्ष्वाकु और परवर्ती पल्लव राजाओं ने कृष्णा नदी घाटी पर शासन किया।
सातवाहनों के पतन के बाद आंध्र के इक्ष्वाकु और परवर्ती पल्लव राजाओं ने कृष्णा नदी घाटी पर शासन किया।
इसके बाद पूर्वी चालुक्य और तेलुगू चोलों ने इस क्षेत्र पर आधिपत्य जमाए रखा।
मध्यकाल में अमरावती कोटा राजाओं के नियन्त्रण में था।
कोटा राजाओं को 11वीं सदी में काकतियों ने अपदस्थ कर दिया और अमरावती संयुक्त तेलुगू साम्राज्य का अंग बन गया।
अमरावती को तीन कारणों से पवित्र माना जाता है-कृष्णा नदी, एक महत्वपूर्ण क्षेत्र ‘स्थल महात्मय' और श्री महालिंगा मूर्ति।
इसके अतिरिक्त वज्रयान के पारम्परिक स्रोतों के अनुसार बुद्ध ने धरणीकोटा/ धान्यकटक में उपदेश दिया और कालचक्र महोत्सव आयोजित किया।
यह अमरावती की प्राचीनता को 500 ई. पू. तक ले जाता है।
अमरेश्वर मंदिर में आयोजित होने वाले प्रमुख उत्सव हैं-महाशिवरात्रि जो 'माघ बहुला दशमी' को होता है, नवरात्रि और कल्याण उत्सव।
वर्ष 2006 में यहाँ 30वें कालचक्र का आयोजन किया गया और इस आयोजन में दलाई लामा भी आए थे।
यह पूरे भारत में उन 12 शहरों/नगरों में से एक है जिन्हें विरासत नगर घोषित किया गया है।
हाल ही में इसे आंध्र प्रदेश की राजधानी घोषित किया गया।
हाल ही में इसे आंध्र प्रदेश की राजधानी घोषित किया गया।
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