श्रमण परम्परा क्या है ?

श्रमण परम्परा क्या है ?

वैदिक परम्परा के बाहर के कुछ दार्शनिक इस प्रश्न के लिए 'सत्य एक है अथवा अनेक' का उत्तर ढूँढ़ने के लिए प्रयत्नशील थे।

अनेक विचारक, जिन्हें श्रमण कहा जाता था, स्थान-स्थान पर घूमकर अपनी विचारधाराओं के विषय में अन्य लोगों से तर्क-वितर्क करने लगे।

श्रमण परम्परा यज्ञ-हवन की विरोधी थी और योग साधना एवं तपाचरण पर ही बल देती थी।

भारत का इतिहास श्रमण संस्कृति एवं ब्राह्मण संस्कृति के मध्य संघर्ष का इतिहास है और यह संघर्ष वर्तमान में जारी है।

श्रमण का अर्थ परिश्रम करना है।
यह इस परम्परा की इस मान्यता को प्रकट करता है कि कोई अन्य हमारा भाग्य विधाता नहीं है।

व्यक्ति अपना विकास अपने परिश्रम से स्वयं कर सकता है।
व्यक्ति ही अपने सुख और दुःख का कर्ता है, समन का अर्थ है समता भाव।

सभी को आत्मवत् समझना, सबके साथ आत्मवत् आचरण करना, समाज के प्रत्येक सदस्य को समान मानना।
जाति और वर्ण व्यवस्था में विश्वास न करना।
शमन का अर्थ है अपनी वृत्तियों को संयमित करना।
परिग्रह की सीमा का निर्धारण करना।
वैदिक या ब्राह्मण के भी तीन लक्षण हैं-यज्ञ करना, कर्ता रूप में ईश्वर की मान्यता और यह मानना कि सब कुछ ईश्वर के अधीन है।
नियति या भाग्यवाद में विश्वास करना।

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