अजातशत्रु कौन था ?

अजातशत्रु




अजातशत्रु (492-460 ई. पू.) मगध सामाज्य का प्रतापी शासक था। वह अपने पिता बिम्बिसार की हत्या करके मगध का शासक बना।  बिम्बिसार ने अजातशत्रु को चम्पा का गवर्नर नियुक्त किया था। 





बौद्ध स्रोतों के अनुसार, बिम्बिसार की मृत्यु उसके पुत्र कुनिक के हाथों हुई, जो बाद में अजातशत्रु के नाम से प्रसिद्ध हुआ।  

ऐसा भी कहा जाता है कि अजातशत्रु ने अपने पिता की हत्या बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त के उकसाने पर की थी।  

अपनी साम्राज्यवादी नीति के अन्तर्गत उसने काशी तथा वज्जि संघ को एक लम्बे संघर्ष के बाद मगध साम्राज्य में मिला लिया।  

उसके मंत्री वस्सकार द्वारा वैशाली के लिच्छवियों में फूट डालने के कारण ही अजातशत्रु को वज्जि संघ पर विजय प्राप्त हुई।  

इस युद्ध में अजातशत्रु ने रथमुसल तथा महाशिलाकंटक नामक नए हथियारों का प्रयोग किया।  
अजातशत्रु की सफलताओं में लिच्छवियों पर विजय को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। 

 लिच्छवियों के विरुद्ध आक्रमण को प्रभावशाली बनाने के लिए ही अजातशत्रु ने गंगा के तट पर पाटलिग्राम नामक स्थान पर दुर्गों का निर्माण किया।  

बाद में यह पाटलिपुत्र महानगर के रूप में प्रसिद्ध हुआ।  

अजातशत्रु ने अवन्ती के चण्ड प्रद्योत को भी पराजित किया।  

बौद्ध धर्म के इतिहास में अजातशत्रु का बुद्ध से मिलना एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।  

यह घटना द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के एक उभारदार दृश्यांकन में दिखलाई गई है, जो मध्य भारत के भरहुत स्तूप के पश्चिमी द्वार के रेलिंग स्तम्भ पर अवस्थित है। 


जैसा कि बिम्बिसार के बारे में कहा जाता है, अजातशत्रु को भी महावीर का अनुयायी बताया जाता है और बौद्ध स्रोतों में उसे बुद्ध का अनुयायी।  

जैन ग्रन्थ यह वर्णन करते हैं कि अजातशत्रु वैशाली और चम्पा में महावीर के साथ मिले थे और वे महावीर की शिक्षा से अत्यन्त प्रभावित
थे। 

बौद्ध ग्रन्थों में अजातशत्रु को बुद्ध के समक्ष जाकर अपने पितृहन्ता होने का प्रायश्चित करते हुए दिखलाया गया है।  

अजातशत्रु के शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ।  

बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् अजातशत्रु कुशीनगर गया, वहाँ से उसने बुद्ध की अस्थियों को लाकर राजगृह में उनके ऊपर स्तूप का निर्माण करवाया तथा कई बौद्ध विहारों तथा राजगीर के आसपास बौद्ध विहारों का जीर्णोद्धार किया।  

इसी के काल में राजगृह में सप्तपणी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया।  

जिसमें बुद्ध के उपदेशों को सुत्तपिटक तथा विनयपिटक के रूप में लिपिबद्ध किया गया।  

अन्तिम समय में अजातशत्रु की हत्या कर उसके पुत्र उदयिन द्वारा की दी गई। 

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