नरसिंह वर्मन प्रथम
कालीबंगा क्या है ?
नरसिंह वर्मन प्रथम पल्लव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। महेन्द्र वर्मन प्रथम के बाद वह काँची की राजगद्दी पर बैठा था।
इसने परिमल, मणिमंगलम और शूरमार के युद्धों में पुलकेशिन द्वितीय को हराकर वातापीकोण्डा की उपाधि धारण की।
नरसिंह वर्मन ने बादामी के चालुक्यों (पुलकेशिन द्वितीय) पर अधिकार करने के बाद अपना विजय स्तम्भ स्थापित किया था।
इस विजय का उल्लेख बादामी में मल्लिकार्जुन मन्दिर के पीछे एक पाषाण पर उत्कीर्ण है।
इस विजय के पश्चात् नरसिंह वर्मन ने महामल्ल की भी उपाधि धारण की।
नरसिंह वर्मन ने चालुक्य विजय के फलस्वरूप श्रीलंका के मानवर्मन की सहायता देने के लिए एक शक्तिशाली नौसेना सिंहल भेजी।
जिसकी सहायता से उसने सिंहल के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया।
नरसिंह वर्मन की श्रीलंका विजय का उल्लेख काशाक्कुडि ताम्रपत्र और महावंश में किया गया है।
महावश के 47 अध्याय के अनुसार श्रीलंका को राजकुमार मानवर्मन भारत के राजा नरसिंह वर्मन के दरबार में रहता था।
नरसिंह वर्मन प्रथम के शासन काल 641 ई. में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांचा आया।
नरसिंह वर्मन प्रथम ने महाबल्लपुरम मामल्लपुरम (महाबलिपुरम) नामक एक नए नगर की स्थापना की।
नरसिंह वर्मन प्रथम ने महाबल्लपुरम मामल्लपुरम (महाबलिपुरम) नामक एक नए नगर की स्थापना की।
इस नए नगर में उसने अनेक विशाल मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें से धर्मराज मन्दिर अब तक विद्यमान है।
उसने द्रविड़ शैली के जिस रूप का आरम्भ किया उसे मामल्ल शैली कहा जाता है।
महाबलीपुरम उसके राज्य का प्रमुख बन्दरगाह था।
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