श्री लालबहादुर शास्त्री कौन थे ?

श्री लालबहादुर शास्त्री

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श्री लालबहादुर शास्त्री



लालबहादुर शास्त्री स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे।  

शारीरिक कद में छोट होने के बावजूद भी वह महान् साहस और इच्छाशक्ति के व्यक्ति थे। 



आजादी से पहले उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।  
उन्होंने बड़ी सादगी और ईमानदारी के साथ अपना जीवन जिया आर सभी देशवासियों के लिए एक प्रेरणा के स्रोत बने।  

भारत के गणराज्य बनने के बाद जब पहले आम चुनाव आयोजित किए गए, तब लालबहादुर शास्त्री कांग्रेस पार्टी के महासचिव थे। 

कांग्रेस पार्टी ने भारी बहुमत के साथ चुनाव जीता, 1952 में जवाहरलाल नेहरू ने लालबहादुर शास्त्री को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया।  

तृतीय श्रेणी के डिब्बों में यात्रियों को और अधिक सुविधाएं प्रदान करने में लालबहादुर शास्त्री के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।  

उन्होंने रेलवे में प्रथम श्रेणी और तृतीय श्रेणी के बीच विशाल अन्तर को कम किया।  

1956 में लालबहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। 

जवाहरलाल नेहरू ने शास्त्रीजी को मनाने की बहुत कोशिश की, पर लालबहादुर शास्त्री अपने फैसले पर कायम रहे।  

अपने कार्यों से लालबहादर शास्त्री ने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के एक नए मानक को स्थापित किया।  

अगले आम चुनावों में जब कांग्रेस सत्ता में वापस आई, तब लालबहादुर शास्त्री परिवहन और संचार मंत्री और बाद में वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने।  

वर्ष 1961 में गोविन्द वल्लभ पंत के देहान्त के पश्चात् वह गृह मंत्री बने। 
 सन् 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान शास्त्रीजी ने देश की आन्तरिक सुरक्षा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  

1964 में जवाहरलाल नेहरू के मरणोपरांत सर्वसम्मति से लालबहादुर शास्त्री को भारत का प्रधानमंत्री चुना गया।  

यह एक मुश्किल समय था और देश बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा था। 

 देश में खाद्यान्न की कमी थी और पाकिस्तान सुरक्षा के मोर्चे पर समस्या खड़ी कर रहा था। 

1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया।  

कोमल स्वभाव वाले लालबहादुर शास्त्री ने इस अवसर पर अपनी सूझबूझ और चतुरता से देश का नेतृत्व किया।  

सैनिकों और किसानों को उत्साहित करने के लिए उन्होंने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया।  
पाकिस्तान को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और शास्त्रीजी के नेतृत्व की प्रशंसा हुई।  

जनवरी 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच शान्ति वार्ता के लिए ताशकंद में लालबहादुर शास्त्री और अयूब खान के बीच बातचीत हुई। 
 भारत और पाकिस्तान ने रूसी मध्यस्थता के तहत् संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए।  

सन्धि के तहत् भारत युद्ध के दौरान कब्जा किए गए सभी प्रांतों को पाकिस्तान को लौटने के लिए सहमत हुआ।  

10 जनवरी, 1966 को संयुक्त घोषणापत्र हस्ताक्षरित हुए और उसी रात को दिल का दौरा पड़ने से लालबहादुर शास्त्री का निधन हो गया। 



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