दयानन्द सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे।
उनकी पहचान महान् समाज सुधारक, राष्ट्र-निर्माता, प्रकाण्ड विद्वान्, सच्चे संन्यासी, ओजस्वी सन्त और स्वराज के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात के राजकोट जिले के काठियावाड़ क्षेत्र में टंकारा गाँव के निकट मौरवी नामक स्थान पर सन् 1824 को हुआ था।
दयानन्द सरस्वती के बचपन का नाम मूलशंकर था।
उन्होंने मात्र पाँच वर्ष की आयु में 'देवनागरी लिपि' का ज्ञान हासिल कर लिया था, और सम्पूर्ण यजुर्वेद कंठस्थ कर लिया था।
उत्तर भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार का सबसे प्रभावशाली आन्दोलन दयानन्द सरस्वती ने शुरू किया था।
दण्डी स्वामी पूर्णानन्द ने मूलशंकर का नाम स्वामी दयानन्द सरस्वती रखा।
दयानन्द सरस्वती के गुरु स्वामी विरजानन्द थे।
दयानन्द सरस्वती के अनुसार 'ईश्वर केवल एक है' जिसकी पूजा मूर्ति रूप में नहीं, बल्कि जीवात्मा के रूप में की जानी चाहिए।
कुछ समय पश्चात् आर्य समाज का मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया।
दयानन्द ने अपने उपदेश हिन्दी भाषा में दिए उनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश है।
आर्य समाज के सदस्य दस सिद्धान्तों का अनुसरण करते हैं।
इनमें से प्रथम है-वेदों का अध्ययन। शेष सभी सिद्धान्त सद्गुण और नैतिकता से सम्बन्धित हैं।
दयानन्द ने आर्य समाज के सदस्यों के लिए सामाजिक व्यवहार के, जो नियम बनाए थे।
उनमें जातिभेद और सामाजिक असमानता के लिए कोई स्थान नहीं था।
शिक्षा के प्रसार के लिए पूरे उत्तर भारत में बहुत से स्कूल और कॉलेज खोले गए।
दयानन्द वेदों को प्रमाणिक-ग्रन्थ मानते थे।
उन्होंने इसके लिए "वेदों की ओर चलो" का नारा दिया।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने झूठे धर्मों के खण्डन के लिए 'पाखण्ड खण्डिनी पताका' लहराई।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने झूठे धर्मों के खण्डन के लिए 'पाखण्ड खण्डिनी पताका' लहराई।
आर्य समाज का दूसरा कार्यक्रम गौरक्षा आन्दोलन था।
1882 ई. में आर्य समाज ने गायों की रक्षा के लिए गौरक्षिणी सभा की स्थापना की।
एनी बेसेंट ने कहा था कि "स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि भारत भारतवासियों के लिए है। "
स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन के अन्तर्गत उन लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में आने का अवसर मिला जिन्होंने किसी कारणवश कोई और धर्म स्वीकार कर लिया था।
स्वामी बेलन्टाइन शिरोल ने बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति का जनक कहा था।
स्वामी बेलन्टाइन शिरोल ने बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति का जनक कहा था।
दयानन्द सरस्वती को भारत का मार्टिन लूथर कहा था।
1882 ई. में दयानन्द सरस्वती ने स्वदेशी का नारा दिया था।
स्वदेशी का उपयोग करने वाले वह प्रथम भारतीय थे।
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