गयासुद्दीन तुगलक
गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.) ने तुगलक वंश की स्थापना 1320 ई. में की। यह सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के शासनकाल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गवर्नर नियुक्त हुआ था।
गयासुद्दीन तुगलक का वास्तविक नाम गाजी मलिक था। इसने मंगोलों के 23 आक्रमण विफल किए थे।
मंगोलों को पराजित करने के कारण वह मालिकउल-गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
किसानों की स्थिति में सुधार करना और कृषि योग्य भूमि में वृद्धि करना उसके दो मुख्य उद्देश्य थे।
अलाउद्दीन खिलजी द्वारा लागू की गई भूमि लगान तथा मण्डी सम्बन्धी नीति के पक्ष में वह नहीं था।
उसने 'मुकद्दम तथा खतों' को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए।
लगान निश्चित करने में बटाई का प्रयोग फिर से प्रारम्भ कर दिया 'ऋणों की वसूली' को बन्द करवा दिया।
भूराजस्व की दर को 1/3 किया।
सल्तनत काल में नहर बनाने वाला यह प्रथम शासक था।
अलाउद्दीन की कठोर नीति के विपरीत गयासुद्दीन ने उदारता की नीति अपनाई, जिसे बरनी ने रस्म-ए-मियान अर्थात मध्यपंथी नीति कहा।
अमीरों को पद देने में वंशानुगत के साथ-साथ योग्यता का भी आहार बनाया गया ताकि इजारेदारी की प्रथा समाप्त की जा सके।
गयासुद्दीन की डाक व्यवस्था बहुत श्रेष्ठ थी।
अलाउद्दीन द्वारा चलाई गई 'दाग' तथा चेहरा प्रथा को प्रभावशाली ढंग से लागू किया।
बरनी के अनुसार सुल्तान अपने सैनिकों के साथ पुत्रवत् व्यवहार करता था।
गयासद्दीन ने 1321 ई. में वारंगल पर आक्रमण किया, लेकिन वहाँ के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव को पराजित करने में असफल रहा।
गयासुद्दीन ने 1323 ई. में द्वितीय अभियान के अन्तर्गत शाहजादे 'जौना खाँ' (मुहम्मद बिन तुगलक) को दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभुत्व की पुन: स्थापना के लिए भेजा।
गयासद्दीन ने 1321 ई. में वारंगल पर आक्रमण किया, लेकिन वहाँ के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव को पराजित करने में असफल रहा।
गयासुद्दीन ने 1323 ई. में द्वितीय अभियान के अन्तर्गत शाहजादे 'जौना खाँ' (मुहम्मद बिन तुगलक) को दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभुत्व की पुन: स्थापना के लिए भेजा।
जौना खाँ ने वारंगल के काकतीय एवं मदुरा के पाण्डव राज्यों को जीतकर दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।
इस प्रकार गयासुद्दीन के समय में ही सर्वप्रथम दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया। इसमें सर्वप्रथम वारंगल था।
निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक के बारे में कहा था कि "दिल्ली अभी बहुत दूर है। "
सुल्तान का औलिया से मनमुटाव हो गया था।
स्वागत समारोह के लिए निर्मित लकड़ी के भवन (तुगलकाबाद के समीप अफगानपुर गाँव) के गिरने से फरवरी - मार्च 1325 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
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