भारत-श्रीलंका सम्बन्ध

भारत-श्रीलंका सम्बन्ध एक पृष्ठभूमि


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भारत-श्रीलंका सम्बन्ध


लिखित इतिहास के आधार पर भारत व श्रीलंका के सम्बन्ध अत्यंत प्राचीन तथा ऐतिहासिक हैं।

ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में श्रीलंका में भारतीय सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध धर्म की शुरूआत की गई।
आज भी श्रीलंका का बहुसंख्यक सिंहली समुदाय बौद्ध धर्म के थेरवाद सम्प्रदाय का अनुयायी है।
मध्य युग में 11वीं शताब्दी में श्रीलंका भारत के चोल राजाओं के अधीन था।

इसके बाद आधुनिक काल में श्रीलंका व भारत दोनों ही ब्रिटिश शासन के अधीन थे।
इस पृष्ठभूमि में दोनों देशों के बीच 2500 वर्षों से लोगों, संस्कृति, धर्म तथा व्यापार का आदान-प्रदान होता रहा है।
वर्ष 1947 में भारत ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ तथा अगले वर्ष 1948 में ही श्रीलंका को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
दोनों देशों ने स्वतंत्रता के बाद गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया तथा अपने आरम्भिक विवादों का समाधान आपसी विचार-विमर्श के द्वारा किया।

प्रारम्भ के तीन दशकों में दोनों देशों के बीच सुगम राजनीतिक व आर्थिक व सांस्कृतिक सम्बन्धों का संचालन हुआ , लेकिन 1980 के दशक में तमिल समस्या के गम्भीर रूप धारण करने के बाद दोनों देशों में विवाद व अविश्वास का विकास हुआ, जो आज भी जारी है।

भारत तमिलों को स्वायत्तता देने की माँग का समर्थन कर रहा है, लेकिन भारत आज भी श्रीलंका की अखण्डता व एकता का प्रबल पक्षधर है।
आरम्भ में सबसे पहले ब्रिटिश काल में श्रीलंका गए भारतीय मूल के तमिलों की नागरिकता की समस्या सामने आई।

ऐसे तमिलों की संख्या 9 लाख 75 हजार थी तथा श्रीलंका की सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से मना कर दिया था।
इस समस्या के समाधान के लिए 1954 तथा 1964 में दो समझौते हुए जिससे इस समस्या का समाधान किया गया।

अन्तिम समाधान यह हुआ कि इनमें से 5 लाख 25 हजार तमिलों को भारत वापस ले लेगा तथा उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।

3 लाख तमिलों को श्रीलंका की नागरिकता प्रदान की जाएगी।

शेष बचे 1 लाख 50 हजार तमिलों के बारे में 1974 में यह समझौता हुआ कि इनमें से आधे तमिलों को भारत की नागरिकता दी जाएगी तथा शेष आधे तमिलों को श्रीलंका की नागरिकता दी जाएगी।
1968 में दोनों देशों के बीच में स्थित 300 गज चौड़े कच्छातिउ द्वीप की सम्प्रभुता का विवाद सामने आया।

दोनों ने एक समझौते के द्वारा 1974 में ही कच्छातिउ द्वीप की सम्प्रभुता का विवाद भी निपटा लिया।

भारत ने उदारता दिखाते हुए इस द्वीप पर श्रीलंका की सम्प्रभुता स्वीकार कर ली, लेकिन इस द्वीप में कुछ सीमाओं के साथ भारतीय मछुआरों को भी आने-जाने की स्वतंत्रता है, फिर भी वर्तमान में श्रीलंका द्वारा भारतीय मछुआरों के विरुद्ध धरपकड़ कार्यवाही यदाकदा दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बन जाती है।

श्रीलंका का आरोप है कि भारतीय मछुआरे श्रीलंका की समुद्री सीमा में प्रवेश कर जाते है।

इसके अतिरिक्त दोनों देशों के मध्य घनिष्ठ राजनीतिक सम्बन्धों का प्रमाण यह हैं कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय श्रीलंका ने दोनों देशों के मध्य सुलह के गम्भीर प्रयास किए थे।

यह बात अलग है कि श्रीलंका को इसमें सफलता नहीं मिली।

श्रीलंका ने विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भारत की गुटनिरपेक्ष नीति का समर्थन किया है।

1974 में जब भारत ने अपना प्रथम आण्विक परीक्षण किया, तो अन्य देशों से अलग श्रीलंका ने भारत की आलोचना नहीं की।

2005 में श्रीलंका में सुनामी के कारण आई तबाही में भारत ने श्रीलंका को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की।



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