जलवायु आपातकाल (क्लाइमेट इमरजेंसी)
जलवायु परिवर्तन की भयावहता को बताता शब्द 'क्लाइमेट इमरजेंसी ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी का वर्ड ऑफ द ईयर बना।
इस शब्द को शामिल करने का श्रेय जलवायु एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग को दिया गया।
दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन को लेकर लिखे, गए क्लाइमेट क्राइसिस, क्लाइमेट डेनायल जैसे शब्दों के महत्व को समझाने के लिए ऑक्सफोर्ड ने क्लाइमेट इमरजेंसी शब्द को चुना।
इस शब्द को शामिल करने का श्रेय जलवायु एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग को दिया गया।
दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन को लेकर लिखे, गए क्लाइमेट क्राइसिस, क्लाइमेट डेनायल जैसे शब्दों के महत्व को समझाने के लिए ऑक्सफोर्ड ने क्लाइमेट इमरजेंसी शब्द को चुना।
ऑक्सफोर्ड कॉर्पस ने वर्ल्ड ऑफ द ईयर घोषित करने के लिए 210 करोड़ शब्दों का डाटा इकट्ठा किया।
शब्दों का विश्लेषण करने पर सामने आया कि पिछले वर्ष के मुकाबले 2019 में क्लाइमेट इमरजेंसी शब्द 100 गुना ज्यादा कॉमन था।
शब्दों का विश्लेषण करने पर सामने आया कि पिछले वर्ष के मुकाबले 2019 में क्लाइमेट इमरजेंसी शब्द 100 गुना ज्यादा कॉमन था।
बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से धरती को बचाने के लिए दुनिया के कई देशों में लोगों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए स्वतः स्फूर्त ऐसा जन आंदोलन खड़ा कर दिया है, जिसमें माँग की जा रही है कि सरकार शून्य कार्बन उत्सर्जन की एक मियाद तय कर दे।
पिछले तीन वर्ष में इस आंदोलन ने जोर पकड़ा है।
पर्यावरण और उससे जुड़े मसलों पर जैसे-जैसे लोग जागरूक हो रहे हैं, उन्हें समझ आ रहा है कि अगर अभी नहीं सँभले, तो हमारी पीढ़ियों का भविष्य बीमारियों और संकटों से ग्रस्त होगा।
उनके लिए न तो शुद्ध हवा होगी, स्वच्छ पानी से वे गला नहीं तर कर सकेंगे।
पर्यावरण दमघोंटू हो चुका होगा।
मौसम-चक्र इतना असंतुलित हो चुका होगा कि सर्दी-गर्मी और बारिश की आवृत्तिप्रवृत्ति को इन्सानी शरीर सह नहीं सकेगा।
पर्यावरण और उससे जुड़े मसलों पर जैसे-जैसे लोग जागरूक हो रहे हैं, उन्हें समझ आ रहा है कि अगर अभी नहीं सँभले, तो हमारी पीढ़ियों का भविष्य बीमारियों और संकटों से ग्रस्त होगा।
उनके लिए न तो शुद्ध हवा होगी, स्वच्छ पानी से वे गला नहीं तर कर सकेंगे।
पर्यावरण दमघोंटू हो चुका होगा।
मौसम-चक्र इतना असंतुलित हो चुका होगा कि सर्दी-गर्मी और बारिश की आवृत्तिप्रवृत्ति को इन्सानी शरीर सह नहीं सकेगा।
भारत में भी सुप्रीम कोर्ट में जलवायु आपातकाल घोषित करने को लेकर एक याचिका डाली गई है।
याचिका में माँग की गई है कि 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य स्तर पर लाना सरकार सुनिश्चित करे।
याचिका में माँग की गई है कि 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य स्तर पर लाना सरकार सुनिश्चित करे।
दिल्ली सहित दुनिया के कई शहर प्रदूषण की मार झेल रहे हैं।
5 दिसम्बर, 2016 को आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में डेयरबिन शहर में आपात काल लागू किया गया।
1 मई, 2019 को ब्रिटेन की संसद ने जलवायु आपातकाल घोषित किया।
5 दिसम्बर, 2016 को आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में डेयरबिन शहर में आपात काल लागू किया गया।
1 मई, 2019 को ब्रिटेन की संसद ने जलवायु आपातकाल घोषित किया।
इस देश के एक दर्जन से अधिक शहर और कस्बे ऐसा पहले ही कर चुके हैं।
जून 2019 में पोप फ्रांसिस ने वेटिकन सिटी में इमरजेंसी आपातकाल घोषित किया।
जून 2019 में पोप फ्रांसिस ने वेटिकन सिटी में इमरजेंसी आपातकाल घोषित किया।
आयरलैंड, पुर्तगाल, कनाडा, फ्रांस, अर्जेन्टीना, स्पेन, आस्ट्रिया सहित कई देशों ने ऐसा उपबन्ध लागू कर दिया है।
अक्टूबर 2019 तक दुनिया के 1143 ऐसी प्रशासन प्रणाली या स्थानीय सरकारें हैं, जिन्होंने जलवायु आपातकाल को लागू कर दिया है।
क्या है जलवायु आपातकाल?
दुनियाभर में जलवायु पर मँडरा रहे संकट के मद्देनजर यूरोपीय संघ की ओर से हाल ही में जलवायु आपातकाल यानी कि क्लाइमेट इमरजेंसी (Climate Emergency) की घोषणा की गई है।
इस तरह से कदम उठाने वाला दुनिया का यह पहला बहुपक्षीय गुट भी बन गया है।
इस तरह से कदम उठाने वाला दुनिया का यह पहला बहुपक्षीय गुट भी बन गया है।
कार्बन उत्सर्जन की वजह से दुनियाभर में इस वक्त जलवायु खतरे में है।
'जलवायु आपातकाल' की घोषणा किन परिस्थितियों में की जा सकती है।
इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन ब्रिस्टल और लंदन सहित कई शहरों ने पहले ही जलवायु आपातकाल घोषित किया है।
इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन ब्रिस्टल और लंदन सहित कई शहरों ने पहले ही जलवायु आपातकाल घोषित किया है।
हमारे पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ने के परिणामस्वरूप जलवायु आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
ये गैस हमारे प्लैनेट को लगातार गर्म कर रहे हैं, जो एक वैश्विक आपदा के समान है।
ये गैस हमारे प्लैनेट को लगातार गर्म कर रहे हैं, जो एक वैश्विक आपदा के समान है।
जब तक इन गैसों को शून्य स्तर पर नहीं लाया जाता तब तक इन गैसों का परिणाम ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आएगा, जो मानवता तथा दुनिया के पारिस्थितिक तंत्रों के लिए विनाशकारी होगा।
इस आपातकाल की नैतिक प्रतिक्रिया का लक्ष्य मानव तथा जीव-जन्तुओं समेत सूक्ष्म जीवों के अधिकतम सुरक्षा पर आधारित होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने का वर्तमान लक्ष्य 2050 तक इसे 80% (1990 के स्तर की तुलना में) तक लाना है।
8 अक्टूबर, 2018 को जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC) ने जलवायु विज्ञान की स्थिति पर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की थी।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि यदि प्लैनेट 1.5°C तक गर्म होता है, तो इसके विनाशकारी परिणाम यथाअधिकांश प्रवाल भित्तियों का नष्ट होना तथा एक्सट्रीम वेदर जैसे हीट वेव तथा बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि होगी।
इस सप्ताह की शुरूआत में वेल्श और स्कॉटिश सरकारों ने जलवायु आपातकाल घोषित किया था।
स्कॉटलैंड में 2045 तक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को शून्य स्तर पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
Comments
Post a Comment