सीएमएस कॉप-13 क्या है ?

सीएमएस कॉप-13

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सीएमएस कॉप-13


प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (सीएमएस) को लेकर 13वाँ कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज यानी कॉप-13, भारत के गुजरात राज्य की राजधानी गांधीनगर में आयोजित किया गया है।
15 फरवरी से 22 फरवरी, 2020 तक चलने वाले सीएमएस कॉप-13 में 110 देशों के लगभग 1200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और तेजी से लुप्त होती प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के बारे में चर्चा की।

मेजबान देश के रूप में अगले तीन वर्षों तक भारत इस सम्मेलन की अध्यक्षता करेगा।

भारत 1983 से ही सीएमएस कन्वेशन पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में से रहा है।

भारत सरकार प्रवासी समुद्री पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है।

संरक्षण योजना के तहत् इनमें डुगोंग, व्हेल शार्क और समुद्री कछुए की दो प्रजातियों की भी पहचान की गई है।

इस बार इस सम्मेलन की विषय वस्तु है "प्रवासी प्रजातियाँ दुनिया को जोड़ती हैं और हम उनका अपने यहाँ स्वागत करते हैं। "


सम्मेलन का प्रतीक चिन्ह दक्षिण भारत की पारम्परिक कला कोलम से प्रेरित है। प्रतीक चिन्ह में इस कला के माध्यम से भारत में आने वाले प्रमुख प्रवासी पक्षियों, जैसे आमूर फाल्कन, हम्पबैक व्हेल और समुद्री कछुओं के साथ प्रमुख को दर्शाया गया है।

वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 के तहत् देश में सर्वाधिक संकटापन्न प्रजाति माने जाने वाले द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को सम्मेलन का शुभंकर बनाया गया है।
भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया में प्रवासी पक्षियों के नेटवर्क का अहम् हिस्सा माना जाता है।
मध्य एशिया का यह क्षेत्र आर्कटिक से लेकर हिन्द महासागर तक के इलाके में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में 182 प्रवासी समुद्री पक्षियों के करीब 297 आवासीय क्षेत्र हैं। इन प्रजातियों में दुनिया की 29 संकटापन्न प्रजातियाँ भी शामिल हैं।

कोप-13 सम्मेलन के दौरान अंतरसत्रीय बैठकों की अध्यक्षता भारत को सौंपी जाएगी। अध्यक्ष के तौर पर भारत की जिम्मेदारी होगी कि वह कोप के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बैठक में लिए गए फैसलों का अमल में लाने का मार्ग सुगम बनाए।

वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियाँ भोजन, सूर्य का प्रकाश, तापमान और जलवायु आदि जैस विभिन्न कारणों से प्रत्येक वर्ष अलग-अलग समय में एक पर्यावास से दूसरे पर्यावास की ओर रुख करती हैं, कुछ प्रवासी पक्षियों और स्तनपायी जीवों के लिए यह प्रवास कई हजार किलोमीटर से भी ज्यादा का हो जाता है।
ये जीव अपने प्रवास के दौरान घोंसले बनाने, प्रजनन, अनुकूल पर्यावरण तथा भोजन की उपलब्धता जैसी सुविधाओं को देखते हुए चलते हैं।

भारत कई किस्म के प्रवासी वन्यजीवों, जैसे बर्फीले प्रदेश वाले चीते, आमुर फाल्कन, बार हेडेड गीज, काले गर्दन वाला सारस, समुद्री कछुआ, डुगोंग्स और हम्पबैक व्हेल आदि का प्राकृतिक आवास है और साइबेरियाई सारस के लिए 1998 में, समुद्री कछुओं के लिए 2007 में, डुगोंग्स के लिए 2008 में और रेप्टर्स के संरक्षण के लिए 2016 में सीएमएस के साथ कानूनी रूप से अबाध्यकारी समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर कर चुका है।

केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि इस अन्तर्राष्ट्रीय 13वें सम्मेलन की मेजबानी भारत कर रहा है।

पूरे एक सप्ताह प्रवासी पक्षियों, प्राणियों और जलचर के संवर्धन और संरक्षण पर चर्चा और समाधान खोजे ताकि प्रकृति और मनुष्य का विकास एक साथ हो।

समुद्र में प्लास्टिक सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने बताया कि भारत ने सिंगल यूज प्लास्टिक वेस्ट पर काबू पाया है।

भारत में समुद्र से करीब 20 हजार टन प्लास्टिक कचरा होता है, जिसमें से करीब 15 हजार टन ही हम निकाल पाते हैं, जबकि पाँच टन रह जाता है।

हमारे यहाँ प्रति व्यक्ति सालाना करीब 11 किलो प्लास्टिक की खपत है, जबकि अमरीका में करीब 100 किलो प्रति व्यक्ति है।

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