इल्तुतमिश
इल्तुतमिश का जन्म मध्य एशिया के एक इल्बारी तुर्क परिवार में हुआ था।
उसके ईर्ष्यालु भाइयों ने उसे जमालुद्दीन 5 मुहम्मद नामक एक दास व्यापारी को बेच दिया।
गजनी में कुतुबुद्दीन ने उसे जमालुद्दीन से खरीदा।
अपने गुणों तथा योग्यता से वह स्वामी का कृपापात्र बन गया।
सन् 1206 ई. में उसने खोखरों के विरुद्ध युद्ध में असीम वीरता तथा साहस का प्रदर्शन किया था।
कुतुबुद्दीन उसकी योग्यता से इतना प्रभावित था कि उसने अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश से कर दिया।
कुतुबुद्दीन उसकी योग्यता से इतना प्रभावित था कि उसने अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश से कर दिया।
कतबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात उसका दामाद इल्तुतमिश दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
उस समय वह बदायूँ का सूबेदार था।
इल्तुतमिश शम्सी वंश का शासक था, जिसके कारण नए वंश का नाम शम्सी वंश पड़ा।
इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
उसने दिल्ली को सल्तनत की राजधानी के रूप में घोषित किया।
इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया।
इल्तुतमिश के राज्यारोहण का आधार 'निर्वाचन' था।
1229 ई. में उसे बगदाद के खलीफा से मान्यता का अधिकार पत्र प्राप्त हुआ।
इल्तुतमिश के समय अवध में पियूँ का विद्रोह हुआ था।
विरोधी सरदारों को परास्त कर इल्तुतमिश ने अपने वफादार गुलाम अमीरों (सरदारों) की एक टुकड़ी रखी, जिसे 'तुर्कान-ए-चहलगनी या चालीसा (चालीस अमीरों का समूह) कहा जाता है।
1221 ई. में दिल्ली सल्तनत को चंगेज खाँ के आक्रमण का खतरा उत्पन्न हो गया था, जब वह ख्वारिज्म के अन्तिम शाह जलालुद्दीन मांगबरनी का पीछा करता हुआ सिन्ध तक पहुँच गया जलालुद्दीन ने इल्तुतमिश से शरण माँगी, जिसे इल्तुतमिश ने अस्वीकार कर दिया और इस प्रकार नवोदित तुर्की साम्राज्य को बचा लिया।
सिक्कों पर इल्तुतमिश ने अपना उल्लेख खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में कराया।
इसने सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परम्परा शुरू की।
ग्वालियर की विजय के बाद इल्तुतमिश ने अपनी पत्री रजिया का नाम सिक्कों पर अंकित करवाया।
उसने मिनहाजद्दीन सिराज तथा मलिक ताजुद्दीन को संरक्षण प्रदान किया।
वह पहला तर्क शासक था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाएं।
सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चाँदी का टंका और ताँबे का जीतल उसी ने आरम्भ किए इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार का निर्माण कार्य पूरा किया और राज्य को सुदृढ़ व स्थिर बनाया।
सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चाँदी का टंका और ताँबे का जीतल उसी ने आरम्भ किए इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार का निर्माण कार्य पूरा किया और राज्य को सुदृढ़ व स्थिर बनाया।
इसने इक्ता व्यवस्था प्रारम्भ की थी, जिसके अन्तर्गत सभी सैनिकों व गैर सैनिक अधिकारियों को नकद वेतन के बदले भूमि प्रदान की जाती थी।
रणथम्भौर जीतने वाला प्रथम शासक इल्तुतमिश ही था.
इल्तुतमिश ने मोहम्मद गोरी की स्मृति में मदरसा-ए-मुइज्जी व अपने पुत्र की स्मृति में नासिरी मदरसा बनवाया था।
इल्तुतमिश को भारत में गुम्बद निर्माण का पिता कहा जाता है।
उसने सुल्तानगढ़ी मकबरा अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की कब्र पर निर्मित करवाया।
यह भारत का प्रथम मकबरा था।
30 अप्रैल, 1236 ई. में इसकी मृत्यु हो गई।
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