कोबरा इफैक्ट क्या है ?

कोबरा इफैक्ट

बीते कुछ महीनों के आर्थिक आँकड़े बताते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त हो गई है।
इस बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के 20वें संस्करण की भूमिका म 'कोबरा इफैक्ट' का जिक्र किया है।

इसके साथ ही इकोनॉमी की पूरी क्षमता के अनुसार दक्षता बढ़ाने के लिए बैंक समेत भारतीय कम्पनियों से संचालन व्यवस्था में सुधार लान को कहा है।



कई बार समस्या को दूर करने के लिए अपनाया गया रास्ता और अधिक परेशानी बढ़ा देता है।
इसे ही कोबरा इफैक्ट' कहते हैं।

इकोनॉमी में इसका जिक्र तब होता है जब सुस्ती को दूर करने के लिए प्रयास किए जाते हैं वे नई मुश्किल खड़ी कर देते हैं।

अगर 'कोबरा इफैक्ट' के अतीत का बात करें तो यह ब्रिटिश शासनकाल में शुरू हुआ था।

कहते हैं कि अंग्रेजों ने लुटियंस दिल्ली में जहरीले कोबरा साँपों की संख्या कम करने के लिए एक नकद प्रोत्साहन योजना चलाई थी, लेकिन ये योजना उनके लिए मुसीबत बन गई।

दरअसल नकद प्रोत्साहन के लालच में लोग कोबरा पालने लगे थे।
जब अंग्रेजों ने इसकी पड़ताल की तो प्रोत्साहन योजना रोक दी गई।

ऐसे में पैसे नहीं मिलने की स्थिति में कोबरा पालने वाले तमाम लोगों ने उन्हें खुला छोड़ दिया, जिससे दिल्ली में कोबरा साँपों की संख्या और बढ़ गई।
कहने का मतलब ये हुआ कि समस्या और अधिक बढ़ गई।

कोबरा इफैक्ट का जिक्र करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, "यह सुनिश्चित करना चुनौती है कि मौद्रिक नीति का लाभ वास्तविक अर्थव्यवस्था को मिले और ऐसा नहीं हो कि वित्तीय बाजारों में यह महत्वहीन बन जाए।हमें कोबरा इफैक्ट को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है। "

बता दें कि रिजर्व बैंक ने सुस्त पड़ी आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए रेपो रेट में इस वर्ष 1.35 प्रतिशत की कटौती की।
इस कटौती के बाद नीतिगत दर 5.15 प्रतिशत पर आ गई है।
जो 9 वर्ष का न्यूनतम स्तर है, लेकिन इसके बावजूद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 2019-20 की दूसरी तिमाही में 25 तिमाहियों के न्यूनतम स्तर 4.5 प्रतिशत पर रही।

जाहिर सी बात है कि अर्थव्यवस्था में माँग के जरिए रफ्तार देने की आरबीआई ने जो कोशिश की है उसका फायदा नहीं मिल रहा है।
इसके उलट अर्थव्यवस्था की रफ्तार और धीमी होती जा रही है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के मुताबिक घरेलू और वैश्विक कारकों से जीडीपी वृद्धि घटी है, वहीं उपभोक्ता कर्ज में वृद्धि हो रही है, जबकि थोक कर्ज में वृद्धि कमजोर है।

इसका कारण कम्पनियाँ और वित्तीय मध्यस्थ अपनी व्यापार गतिविधियों में सुधार के लिए कर्ज में कमी लाने पर ध्यान दे रहे हैं।



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