डूम्सडे क्लॉक क्या है ?

डूम्सडे क्लॉक

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डूम्सडे क्लॉक


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परमाणु वैज्ञानिकों की संस्थान 'द बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्टस्' (BAS) ने 23 जनवरी 2020 को जारी अपने बुलेटिन में दुनिया पर परमाणु युद्ध के खतरे की सम्भावना का संकेत देने वाली कयामत की घड़ी यानी डूम्सडे क्लॉक की सूई को आधी रात 12 बजे के 100 सेकंड पीछे तक ला दिया है, जो इस सूई के 73 वर्ष के इतिहास में सबसे तनावपूर्ण माहौल और एटमी जंग के खतरे को लेकर विश्व को अलर्ट करती है।

डूम्सडे क्लॉक को मानव निर्मित खतरे की आशंका बताने वाले यंत्र के तौर पर देखा जाता है।

डूम्सडे क्लॉक एक सांकेतिक घड़ी है, जो मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक तबाही की आशंका को बताती है।
1947 से ही काम कर रही इस घड़ी ने दुनिया में बढ़ रहे युद्ध के खतरे से आगाह किया है।
1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में हुए हमले के बाद वैज्ञानिकों ने मानव निर्मित खतरे से विश्व को आगाह करने के लिए इस घड़ी का निर्माण किया गया था।

बीएएस की स्थापना 1945 में शिकागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की थी, जिन्होंने पहले परमाणु हथियारों को विकसित करने में मदद की थी। इन्होंने ही दो वर्ष बाद डूम्सडे क्लॉक (कयामत की घड़ी) तैयार की।
शुरू में इस घड़ी को पहले मध्य रात्रि के 7 मिनट पहले सेट किया गया था। पिछली बार प्रलय के करीब पहुँचने का पल 201819 और 1953 में आया था, जब इसे मध्य रात्रि के 2 मिनट पहले सेट किया गया था।
1991 में शीत युद्ध खत्म होने के बाद इसे मध्य रात्रि के 17 मिनट पहले तक वक्त सेट किया गया था।
परमाणु वैज्ञानिकों की जो टीम इस कांटा को आगे या पीछे करने का फैसला करती है, उसमें 13 नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक भी शामिल है।

'डूम्सडे क्लॉक' का यह आकलन युद्धक हथियारों, विध्वंसकारी तकनीक, फेक वीडियो, ऑडियो, अंतरिक्ष में सैन्य ताकत बढ़ाने की कोशिश और हाइपरसोनिक हथियारों की बढ़ती होड़ से मापा गया है।

बीएएस एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो वैश्विक सुरक्षा मुद्दों पर बारीकी से नजर रखता है, ने कहा कि डूम्स डे क्लॉक अब " 73 वर्ष के इतिहास में विनाश के सबसे नजदीक है। " भारत या पाकिस्तान का नाम लिए बिना विशेषज्ञों ने दक्षिण एशिया को ‘परमाणु टिंडरबॉक्स' के रूप में दिखाया है, जहाँ मध्यस्थता और सहभागिता की गुंजाइश बेहद कम है।

संगठन के मुताबिक, "नाटकीय कदम प्रलय के दिन के 20 सेकंड के करीब है, जो यह दिखाता है कि दुनिया पर परमाणु आपदा का जोखिम अपने सबसे चरम बिन्दु पर है, शीत युद्ध के सबसे बुरे दिनों के बाद पहली बार यह घड़ी अब आधी रात के बेहद करीब है और पिछले कई वर्षों में आधी रात के करीब तेजी से बढ़ी है। "
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